

Untangling, One at a Time
जो सही है वो सही है,
जो नहीं है वो नहीं है|
नाचूं तेरे डमरू पे तो मेरी वाह-वाही है,
रत्ती भर जो आह करूँ तो मेरी शामत आई है|
उबली उबली अंगारों सी,
सुलगे उझड़े अरमानों सी,
बेबस फिर भी आस पे ज़िन्दा,
सुन ये आँखें क्या कहें!
बूँद बूँद कर बहती जाती,
ज़ुल्म बेपरवाह सहती जाती,
पिंजरे की चिड़िया के जैसी
फिर ज़िन्दगी क्या रहे!
उनके वार से हुए घाव पे जब हमने दर्द ना जताया
तो उस बात का दर्द उन्हें इतना हुआ कि हमारे घाव ही भर गए।
हमारे बर्दाश्त के नुस्ख़े गज़ब काम कर गए।
चाहते तो हम भी चीख़ सकते थे,
भीड़ में अलग दिख सकते थे,
पर हमारे जीतने के तरीके कुछ और हैं।
वो चाहते तो हम से सीख सकते थे।
पर जीत का हुनर हम से सीखने की बात से
वो ख़ामख़ा ही डर गए।
हमारे बर्दाश्त के नुस्खे गज़ब काम कर गए।
आज कल सब जल्दी में हैं।
सिर्फ मैं ही फुरसत में हूँ।
कोई ज़रा एक लम्हा ठहर जाओ,
मेरे पास आओ।
मेरे जूतों में एक कदम रख भी तो लो,
फुरसत का स्वाद ज़रा चख भी तो लो।
बड़ी मज़ेदार है।
फुरसत आज़ाद है, परिंदों की तरह।
पर उसके पँख नहीं हैं।
क्योंकि वो वहीं रहती है, जहां वो होती है।
उसको उड़ने की ज़रूरत ही नहीं।
वो वहीं, बैठे बैठे ही, आज़ाद है।
ज़मीन पर ही उसका आसमां आबाद है।
बड़े घमंडी हैं सपनें मेरे,
मेरी हकीकतों के आगे झुकने का नाम नहीं लेतें |
समझौतें हाथ बढाएं, तो अकडू थाम नहीं लेतें |
घूर कर देखते हैं मुझे,
जब अकेले में हँसता हूँ मैं उन पर |
जैसे जता रहे हों की मेरा उन पर कुछ क़र्ज़ है |
मैंने पैदा किया है तो पालना मेरा ही फ़र्ज़ है |