बड़े घमंडी हैं सपनें मेरे,
मेरी हकीकतों के आगे झुकने का नाम नहीं लेतें |
समझौतें हाथ बढाएं, तो अकडू थाम नहीं लेतें |
घूर कर देखते हैं मुझे,
जब अकेले में हँसता हूँ मैं उन पर |
जैसे जता रहे हों की मेरा उन पर कुछ क़र्ज़ है |
मैंने पैदा किया है तो पालना मेरा ही फ़र्ज़ है |
ज़मीनी वास्तों से दूर कहीं
हिमालय की चोटियों पे ठने हैं |
न जाने कम्बख्त किस मिट्टी के बने हैं |
देख कर अनदेखा करते हैं
चोकोर धुँधले अंधेरें,
बड़े घमंडी हैं सपनें मेरे |
वैसे गलती उनकी भी नहीं |
मुझ ही को देख कर सीखे हैं शायद |
सच ओर सपनों के तराज़ू में,
आस ओर प्रयास के ज़ोरों पर
कोशिश करता रहता हूँ की
चाहे सच के हक़ में दुनिया सारी हो,
फिर भी सपनों का पलड़ा भारी हो |
पलड़ों की उथल पुथल के बीच
मैं कभी कभी शायद ढील दे देता हूँ |
सच, मैं तुझको ख़ुद पर हावी कर लेता हूँ |
पर झुकेंगे नहीं वो सामने तेरे,
बड़े घमंडी हैं सपनें मेरे |
Photo Credit: Lysons_editions